बढ़ेगी ज़रा बात जाने से पहले
बढ़ेगी ज़रा बात जाने से पहले
ज़रा सोच लो ताव खाने से पहले
बुला लो हमें भी बहाने से पहले
कोई प्यार का गुल खिलाने से पहले
हुआ क़त्ल है तो सभी को दिखाओ
के क़ातिल किसी को बताने से पहले
पता रास्तों का भी कैसे चलेगा
रखो पास नक्शा भी जाने से पहले
न हों अश्क़ आँखों में पोछों अगर हैं
अभी सामने मुस्कुराने से पहले
न नज़दीक आओ गले मत लगाओ
किसी को कभी आज़माने से पहले
किसी की न सुनना कभी सोचना मत
अंधेरे में दीपक जलाने से पहले
गुनाहों का रस्ता है बेशक़ मज़े का
क़दम रोक लेना बढ़ाने से पहले
सभी को बुलाना है आसान लेकिन
न ‘आनन्द’ आए मनाने से पहले
– डॉ आनन्द किशोर