बड़े भाग से यह साल में होली में परधानी बा
फलाने लड़िहे ढेमाके लड़िहे , घर घर इहे कहानी बा।
दिल्ली के लखनऊ के भूलि जा अब ,गाँव बनल रजधानी बा।
खूब लह गईल मुर्ग मुसल्लम दारू वाले भैया के,
बड़े भाग से यह साल में , होली में परधानी बा।
फलाने लड़िहे ढेमाके लड़िहे , घर घर इहे कहानी बा।
अबकी बार त कही दिहले ,मुर्गो चाही दारू चाही।
विजया के मांग अलग बाटे ,वोके बस मेहरारू चाही।
कहले विजया तुहके का पता ,जात हमार जवानी बा।
बड़े भाग से यह साल में , होली में परधानी बा।
सीट जबसे भएल आरक्षित प्रुत्याशी लोग दिक्कते में बाटें।
विजया के माँग के मानी के प्रुत्याशी लोग सकते में बाटें।
बिना मेहरी के मानी ना, सिर पर चढ़ल भवानी बा।
बड़े भाग से यह साल में , होली में परधानी बा।
चारो ओर खाए वालन के , चूल्हा ठंडा परत देख।
विपक्षी से भी जुड़ जईहे ,उनकर चूल्हा जरत देख।
यह चुनाव आ गईले से ,खइले में मनमानी बा।
बड़े भाग से यह साल में , होली में परधानी बा।
– सिद्धार्थ पाण्डेय