बड़े भाई
मेरी उलझन को इतना क्यों बढ़ाते हो बड़े भाई
तुम अपना दर्द मुझसे क्यों छुपाते हो बड़े भाई
अकेले में तुम्हे पाया है मैंने सिसकियाँ भरते
सभी के सामने तुम मुस्कुराते हो बड़े भाई
बने हैं बोझ हम तुम पर मगर तुम कुछ नहीं कहते
सभी का बोझ हँसकर तुम उठाते हो बड़े भाई
हमारे घर के आँगन में पसर जाता है सन्नाटा
कभी जब गाँव से तुम दूर जाते हो बड़े भाई
हमें जी भर हँसाने के लिए तुम क्या नहीं करते
हमें इतना हँसाकर क्यों रुलाते हो बड़े भाई
शिवकुमार बिलगरामी