बड़े काम की बेटियां
ख़ामोशी तेरी,पहल भी तेरा,
नाकामी तेरी,शहर भी तेरा,
गूंजती यहां,बस मेरी सिसकियाँ l
बेखबर वो निर्लज चले,सब भूल-भाल आगे बढ़े
हर चेहरे हर रूप में,दिखता वही बहरूपिया I
न्यूज लिखे संग लेख भी,डिवेट, काव्य, निष्कर्ष भी,
न्याय/दंड के अनुबन्ध,पग-पग पर नये प्रतिबध्ध l
कलंक तेरे मिट गये ,एहसान मुझपर रह गये,
बादल दुखों के छट गये,पाप सभी मिट गये l
फिर नई सुबह नई किरण,पीछे छूटा जुल्मो शितम,
भागम भाग में ये दुनिया,
भीड़ तंत्र जो आगे बढ़ा l
चरित्रवानो को Z+, सुरक्षा का किया खूब प्रवन्ध,
बेटी बचाओ के जुमले,अपराधी बचाओ में तब्दील हुए l
काले धन को चुन-चुन,पाँव तले कुचल दिए,
काले कलंक को माथे,हमने कब कबूल किये,
मानवता होती सर्मशार,नारी तो बनी एक अभिशाप,
तेरी हो या मेरी सही ,वतन चमन यही रही,
काव्य-शीर्षक में सम्मान,जीवन में नही उदयमान l
तेरी जाहीलियत का आलम,पेट्रोल-तीली का बना वतन,
मलीन उद्घोष ऐसा कर,कलंक तुमने मेट लिया,
चकलों पे बैठे ज्ञानी,
दायरे में रह तू नारी,रजा तेरी,तेरी ही सजा,
गुनहगार बस रही बेटियां,
आज नही आदि से,बड़े काम की बेटियांl