बड़का भईय —-2 (भोजपुरी)
बड़का भईया—–2
(कैसा गुनाह)
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पंचायत आज चार दिन के पंचाईती के बाद आपन फैसला सुनावल चाहता, प्रविन आ नवीन दूनों जना राजीव के अर्जल संपत्ति पर आपन – आपन अधिकार जतावे में कवनों कोर कसर उठा ना धईले बा लोग।
बाकीर ऐह बात के, की संपत्ति केकर होई अभीनों केहू के अंदाजा नईखे लागत।
तकरीबन दिन के दस वोस बजे पंचायत बईठल दूनों भाई प्रवीन आ नवीन आपन आपन फक्ष पंचायत के सामने रखल ह लोग बाकीर दूनों जना में एको जना अपना पक्ष में एक भी आदमी के खड़ा ना कर पावल ह कि ऊ आदमी ईन्हन के पक्ष में कुछों बोल सके । हर एक परिस्थिति पर गौर कईले के बाद पंचायत येह नतीजा पर पहूंचल की काहे ना राजीव के संपत्ति दूनों भाई में बराबर- बराबर बाट दिहल जाय।
सब पंचन के ऐह सुझाव पर सहमति बन गईल, बनें भी काहे ना गांव के मानल जानल धनिक आ ऐह समय के जनमत से चूनल सरपंच भीखम महतो के दीहल सुझाव रहे, उनका से सगरे गांव जवार के पईसा कऊड़ी से लगायत सरकारी महकमा तकले काम पड़त रहेला, अब रऊये सब बताईं पानी में रहके भला मगरमच्छ से कोई बैर कर सकेला ।
भीखम महतो के तीनों लईका सरकारी नोकरी में बाड़न अपने चूनाव जीत के सरपंचे बाड़न, पईसा रोपेया के कवनों कमी हईये नईखे , समांगी ऐतना की लाठीयों फाजे के होय त कवनों दिक्कत नईखे । ऊनकर रुआब अईसन की दिन में कहदें की रात हो गईल त उनका आगा पिछा रहेवाला लोग बीना कुछो सोचले खलीये चमचागिरी करे बदे कह दी की रऊआ सहीये कहतानी , हमनीये के देखे में गलती बा जरूर ई राते ह।
अब बस फैसला सुनावे के इंतजार होत रहे कारन ओह समय गांव के जवन मुखिया रहलन घूरहूँ उनका मेहरारू के बुलावा ओही टाईम आ गईल कवनो ना कवनों जरूरी काम रहल होई तबे त बोलावा आईल रहे, ऊ ई कहके चलगईलन की….बस हम पांन दस मीन्ट में आवतानी तबे फैसला सुनावल जाई , वईसे भी बात सर संपत्ति के बा सबकर सईनियों त भईल अनिवार्ये बा।
भीखम कहले प्रवीन से…..देख प्रवीन जबले घूरहूँ अपने घर से आवतारे तब ले सबका खातिर चाय चूय बनवाल हो सकेला चाय पीअवला के कुछो बडहने लाभ मील जाय । ऐतना सुनला के बस बात रहे प्रवीन के घरे चाय के संगे संगे छनऊरीयों छनाये लागल।
पंच लोगन के खातिरदारी में कवनों कमी ना छोड़लन प्रवीन।
देखि भईया पंच परमेश्वर के रुप कहल जाला बाकीर आज के ई भ्रष्ट युग में लगभग – लगभग हर शय आपन शाब्दिक अर्थ खो दिहले बा । अब ना ऊ परमेश्वर सरीखा पंचे बा ना पंच के परमेश्वर मानेवाला लोगे रह गईल बा । अब अगर कही थोड़का बहुत पंच के बात मानल जाता त ओही पंच के जवन कल आ बल से दबंग हो । ई जुगवो त ऊहें नूं बा जेकर लाठी ओकरे भईस।
अबहीन ऐने चाय नास्ता खतमो ना भईल रहे की तबे मंगल काका के सझीला लईकवा; अरे जाईं ईयाद ना आईल , ऊहे …किशनवा जवन दिल्ली में लगतारूरे बीसो बरस से काम क के अब त खुबे जाथा जमीन बनालेले बा सुने में आवेला कवनों ठीकेदारी करेला आ खुबे मोट माल कमाला … ह त किशन राजीव के बहीन प्रिती आ उनका बहनोई दिनेश पाड़े के संगे लेके प्रवीन के दुआरे पहुचले उनका हाथ मे एगो स्टाम्प पेपर रहे जवने पर राजीव के साईन रहे अऊर कुछ लिखलो रहे, ऊ आवते ऊ पेपर भीखम महतो के दिहलें ।
पेपर पढला के बाद भीखम महतो ऊ पेपर बाकी पंच लोग के बढा दिहले बाकी पंच लोग भी उ पेपर पढ लेहल तबले घूरहूँ मुखिया भी आ गईलन ऊनहूँ के ऊ पेपर दिआईल उहो पढलें । सबके पढला के बाद आपस में राय कईके सब पंच लोग आज ई सभा ऐईजंगे स्थगित कईदिहल लोग ई कहके कि अब फैसला बिहने सुनावल जाई।
नवीन जब राजीव के ई कहके अपना से अलग कदेहले कि अब तूं आपन चेत , अब तोहार देखभाल करेके हमरा लगे ना समये बा ना सामर्थे , नाहोखे त तूं प्रवीन भईया के संगे रह जा ऊनकर मेहरारू घरहीं रहेली बनावल खिआवल कई दीहन….ई बात सुनले के बाद राजीव फिर से दिल्लीये चल गईलन कारन की प्रवीन त पहिलहीं आपन मजबूरी के रोना रो के राजीव आ नवीन से अलग हो गईल रहलन वेहीसे राजीव दिल्लीये गईल उचित समझलन ।
अब ना कवनों जाल रहे नाहीं कवनों फिकीर किशनवा के मेहरारू खाना बना के खिआईयेदे , कपड़ो लाता धो दे राजीव पूरा ध्यान कमाये में लगवलन खर्चा कवनों जादा त रहल ना कारन ऊ शुरुये के आभाव के मारल रहलन अतः कवनों तरह के गलत आदत त रहे ना बस खईले नहईले ले ठेकान रहे आ बहुत साल एके कम्पनी में ईमानदारी से कामों करत ह़ो गईल रहे कुछे दिन में ऊनकर बढियां काम – देख के परमोशन हो गईल , किशन ऊनका बचपन के लंगोटिया यार रहलन अतः ऊ ऊनकरा से खोराकी के आलावे एको रोपेया एकस्ट्रा ना लेस, जवन पईसा होखे सब ऊ बैंक में जमा करत चल गईलें।
कुछेक साल ही बीतल रहे ऊ एगो जमीन खरीद लिहले फिर कुछ वर्ष कमाके घर बनवा के ओहीजा कुछ बैंक जे लोन लेके आपन बीजनेश कईलीहले। काम छोड़ला पर कम्पनियों से अच्छे पईसा मिल गईल भाग्य के सुन्दर साथ मिलल ऐह दस वर्ष में राजीव अच्छा खासा ब्यवसायी बन गईलन ।
जब ई बात प्रवीन आ नवीन के पता चलल त ई दूनों भाई ऊनके लगे आवे जाये लागल लोग खुबे आव भगत होखे लागल बाकीर राजीव अब ऐह लोगन के पास जायेके कबो तईयार ना भईलन बाकीर बड़ भाई भईले के कवनों भी फर्ज तबो ना छोड़लन।
ऐने प्रवीन के सब काम धंधा ठप्प हो गईल कवनों बपहस संपत्ति त रहल ना हालत बद् से बद्तर होत चल गईल, नवीनों के डाकटरी कुछ खास ना चल सकल एक दूगो केस ऊनकरा हाथ से खराब हो गईल जवने कारन ऊकने लगे मरीज के आवग दिन पर दिन कमें होत चल गईल , मेहरारू घूस लेत पकड़ईली त ऊनकरा अपना नौकरीयों से हाथ धोवे के परल।
सहीये कहल बा की जब रऊरा केहू के संगे विश्वासघात करन त राऊर भला भगवानो ना करीहन, दोसरा बदे गड़हा खोदेवाला एक ना एक दिन ओह गड़हा में खुदे गीरेला। खैर जहाँ ले लागल राजीव दूनों जने के मदद भी कईलन बाकीर कबो ऊनकर मन ना पातल की ऊ ऐह लोगन के फिर से अपना साथे राख सकें।
समय कबो केहूके ना होला ऐकर लीला भी अजीबे होला , एक दिन एक गरीब दीनहीन भिक्षुक ऊहे भिखमंगा के बचावे में ऊ ट्रक के चपेट में आ गईलन दरहीये पर ऊनकर प्राणान्त हो गईल । ऊ त मर गईलन बाकीर अपना पीछे जो ढेर सारा संपत्ति छोड़ गईल रहलन ई ओहीके पंचाईती पीछला चार दिन से चलत रहे लेकिन फैसला ना हो सकल कारन दूनों भाई में ऊनकर उतराधिकारी बने के होड़ लागल रहे। पंच लोगन के चांदी रहे दूनों ओर से खुबे आव भगत होत रहे , फैसला में देर के एगो मुख्य कारन ईहों रहे।
लेकिन भला कय दिन टारल जा सकत रहे येही से आज फैसला सुनावे के दिन निर्धारित भईल की ओही टाईम प्रितीया आ ओकरा मरद के लेके किशन पहूंच गईलन। ऊ जवन पेपर रहे ऊ राजीव के सगरे जमा पूंजी सगरे संपत्ति के पावर आफ ऐटरनी रहे जवन ऊ अपना जिनगीये में अपना के नाम कई दिहलें रहन।
हार फाछ के पंच लोग के सगरे संपत्ति के मालिकाना अधिकार प्रिती के देवे के परल कारन अगर ईलोग ना दीत त कोर्ट सब साफ कईदीत । प्रीती ओह लोगन के बड़ा धिक्करली ….जा लोगन तोहनी के कबो भला ना होई भईया तोहनी खातिर येह परिवार के खातिर आपन सब सुख त्याग दिहलन ईहातकले की शादीयों ना कईलन लेकिन तोहनी के ऊनकरा के जीवन भर दुख के शिवाय कुछो ना दिहल जान ।
येतना से भी जब तोहनी के मन ना भरल त ऊनका मरला पर ऊनकरा आत्मा के भी लहुलूहान करे बदे पंचाईती बईठा लेहल जान तोहनी के आदमी के रुप में भावना विहीन दानव बाड़जान। आज तोहनी के आपन भाई कहे में शर्म आवता ग्लानि होता हमरा कि हम तोहनी जईसन भाई के बहीन बानी।
आज प्रवीन आ नवीन के भी सर शर्म से धरती में धस गईल बा आंख के सामने भाई के संपूर्ण त्याग व बलिदान झल झल झलके लागल आंखी से लोर भी बहेलागल ।
लेकिन जब चिरई खेत चूगीये गईल त पछतईला से का लाभ।
……
अब रऊर सब से एगो सवाल बा का बड़ भाई भईल अपना सगा सहोदर के बारे में सोचल ओकरा खातिर आपन जीवन तक दाव पर लगा दिहल का कवनो गुनाह ह….? ——–बताईब जा जरूर।।
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पं.संजीव शुक्ल “सचिन”