ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीरें तुम्हारी
वो दसवीं-बारहवीं की,
सौंधी खुशबू वाली किताबों में,
मैं खोजता रहा तुम्हारी तस्वीरें,
वही जो तुम्हारे एडमिशन फार्म पे लगी,
कुछ बची, मैंने संभाल ली,
ब्लैक एंड व्हाइट तुम्हारी तस्वीरें,
छुपा के, मुड़ा के गुदगुदा के,
पन्नों के बीच कहीं,
गुड़हल गेंदा या चमेली वाले पृष्ठों में
चिनार कचनार देवदार वाले चित्रें में
या बिहारी के श्रृंगार दोहों में,
सहेजी समेटी छुपाई,
साथियों से लुकाई,
घर परिवार से बचाई,
खास किताब को किताबों के बीच
बेशकीमती बनाती, तस्वीरें तुम्हारी।
वो नीली स्कूल ड्रेस, सफ़ेद चुनरी
किताबों पे गिरती लंबी चुटिया
कभी बाल संवारती तुम कभी चुनरी,
कभी कापी कलम पे नजर
कभी बहाने बहाने मुझपे,
कभी लिखने के लिए झुकी-झुकी,
कभी पेन पेंसिल के बहाने हंसती,
वो शर्मीली मुसकान,
प्यार से अनजान मीठी छेड़छाड़,
जिस्मानी रिश्तों की सनसनी सी
कुलबुलाहट किंतु कुछ पता नहीं,
सपनों भरा वो समय, वो किशोर काल!
तुम्हें कुछ कहा नहीं,
पर मैंने चूमी थी वो तस्वीरें,
डर-डर कर सहम कर,
वो भी पारदर्शी एक पन्नी में छुपाकर।
आठवीं दसवीं बारहवीं की,
वो लुभावनी कमसिन कमजोर किताबें,
फिर डिग्री मास्टर डिग्री
एमफिल पीएचडी डीलिट बोझ तले
भारी भरकम और उबाऊ किताबों से,
दबकर भी, हमेशा जेहन में,
सांसें लेती रहीं,
तुम्हारी वो मुखर तस्वीर,
कई सालों तक दबी रहीं
खुद वो मासूम तरुण किताबें,
बातूनी किताबें, सपनों से लदी किताबें,
जिनमें दबी रही तुम्हारी तस्वीरें।
इधर नौकारी पेशा हुआ,
शादी ब्याह जिस्मानी रिश्ते हुए,
कुछ योजनानुसार कुछ अनजाने में,
स्त्रीत्व-पुरूषत्व तृष्णारत हम,
बच्चे दर बच्चे पैदा किए,
कुनबा ही पनप गया मेरा
और अब जवानी का दौर भी,
कुछ ही बरस रहा होगा,
उमंगों चपल चंचलताओं का सूरज
ढलने को है,
प्रौढ़ावस्था का बुखार
तन मन में पसरने को है।
तलाश अब ज्यादा करता हूं
आठवीं दसवीं बारहवीं की,
उन पुरानी किंतु ताजा किताबों में,
तुम्हारी उसी चहकती तस्वीर की,
जिद करता हूं खुद से,
कि तुम आज भी वही होगी,
आज भी स्कूल ड्रेस में,
बालों को लम्बी लट को समेटती
दुपट्टा बार-बार वक्ष पे टिकाती,
बिना कुछ कहे देखती मुसकाती,
तमाम जिस्मानी रिश्तों से परे,
दिन ब दिन कलेजे में पेंठ बनाती,
और अंततः निर्णय कि,
जीवन भर तुम्हीं रहोगी रूहानी,
तदुपरांत अनंत वो बाबा बर्फानी।
-✍श्रीधर.