ब्रांड न्यू
“ब्रांड न्यू”
उसने दिहाड़ी के मजदूर रखे थे ,कुल जमा तीन थे , एक रेकी करता था ,दो काम करते थे ।इसके एवज में शाम को तीनों को दिहाड़ी मिला करती थी । शाम को कलेक्शन जमा होता था । नग गिने जाते थे, साबुत पीस आगे भेजे जाते थे , उन्हें धुलकर,प्रेस करके ,फिर नई मोहर लगती थी ,और फिर आगे भेजे जाते थे ।
पहले ने उसे फोन किया –
“साहब , दो नग साबुत हैं ।किसी को भेजकर निकलवा लो। एक दम कड़क है । किसी की नजर नहीं पड़ी “।
“ठीक है ,तुम वहीं रहो, जिस तरह बीमारी फैली है ,दो -तीन तो और वहां पहुंच ही जायेंगे । दूसरे को भेज रहा हूँ “ उसने आश्वासन दिया।
“दूसरे को मत भेजो ,साहब । उसे यहां सब पहचान गए हैं कुछ -कुछ । बवाल हो सकता है ,हम सब पकड़े भी जा सकते हैं। तीसरे वाले को भेज दीजिये “उधर से आवाज आयी।
“तीसरा ,दूसरी साइट पर गया है । वहां चार -पांच आने की उम्मीद है “। शंका का निस्तारण किया गया।
“तो मैं अब क्या करूँ “पहले वाले ने पूछा ?
“तुम निकलो वहां से,दूसरी जगह जाकर रेकी करो ,और फिर शाम को लॉन्ड्री चले जाना। सारे साबुत पीस ले आना देखभाल कर। और हां कुछ पीस पर मोहर लगी रह जाती है ।उसे लौटा देना और कहना कि ठीक से पेट्रोल से धोकर दें। “साहब ने हुक्म दिया।
“तो यहां वाला काम कैसे होगा,कौन करेगा?और मुझे और कोई काम तो नहीं है “पहले वाले ने पूछा?
“वहां का काम मैं करूँगा ,वैसे भी मुझे कोई पहचानता नहीं है उस जगह ।सो काम आसानी से हो जाने की उम्मीद है। और एक बात याद रखना ,लौटते वक्त नेशनल वाले की दुकान से नई मोहर ले आना । जब माल बुर्राक हो तो मोहर भी तो उस पर एकदम नई लगनी चाहिये।कल सुबह जितने पीस मोहर लग कर बिक्री लायक रेडी हो जाएं उन्हें लाल साहब की दुकान पर पहुंचा देना” नए निर्देश जारी करते हुए वो बोला।
“साहब, अगर आज हिसाब हो जाता तो चार पैसे मिल जाते ,कई दिनों की मजदूरी बकाया है ,घर चलाना मुश्किल हो रहा है। हम दिहाड़ी मजदूर हैं साहब,हमको हिसाब टाइम से दे दिया करें “ पहला वाला गिड़गिड़ाया।
“सबको हिसाब टाइम से चाहिये ,लेकिन मुझे भी आगे से हिसाब मिलना चाहिये ना । आज मैं खुद लाल साहब की दुकान पर जाऊँगा हिसाब हो जाएगा तो तुम तीनों की मजदूरी दे दूंगा और लॉन्ड्री का भी हिसाब कर दूंगा “एक और आश्वासन दिया गया।
“जी साहब, जैसा हुक्म आपका “फोन पर ये जवाब देने के बाद पहला वाला दूसरी साइट पर चल पड़ा। उधर साहब , मोबाइल रखने के बाद पहले वाले की साइट पर चल पड़े।
साहब के तीनों मजदूर अंत्येष्टि स्थल से कफ़न चुराते थे ,साहब उन्हें लॉन्ड्री में धुलवाकर,पुरानी मोहर मिटवा देते थे। फिर उसी कफ़न पर नई मोहर लगाकर उसी दुकानदार को बेच देते थे ।
दुकानदार ,पुराने कफ़न को एकदम ‘ ब्रांड न्यू” बताकर किसी नए शव के लिये बेच देता था। ये खरीद -फरोख्त ज़िंदगी के साथ भी थी और ज़िंदगी के बाद भी।
समाप्त