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2 May 2018 · 1 min read

“ब्रज होरी”

ब्रज ,ब्रज होरी गूँज रही ,
बरसाने की राधा डौल रही।
इक हाथ गुलाल लिए ,
इक हाथ पिचकारी थाम रही।
छुप गया नंद का लाला ,
राधा सारी गलियाँ छान रही।
न रंंग दूँ जब तक,
न बैठूँ मैं तब तक,
मन ही मन ये ठान रही।
मन मोहन ना तरसा रे,
मन भावन यही पुकार रही।
बीत ना जाये फागुन प्यारा,
सब सखियाँ,ठिठौली बस मोको निहार रही,
राधा की होरी हो ना पूरी,
जब तक श्याम ना रंग जावेगें।
आओ हे मुरलीधर फागुन बीता जाय है,
दिन भी ना रुकत निगौडा सरपट बीतत जाय है,
बस आस यही बदले में कान्हा
तुम भी मोको रंग में रंग जोओगें
चाह बस इतनी सी मैं तो चाहय रही।
#सरितासृजना

Language: Hindi
Tag: गीत
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