ब्यापक मौलिक सोंचों में असीमताः
ब्यापक मौलिक सोंचों में असीमताः
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जीवन की सत्यता अमोघ अस्त्र शस्त्र है,
रखती खुद है विचारों में द्रष्टता गहराई।
असीम ताकत भरी होती है सत्यता में,
स्वर्ग को पृथ्वी-स्वर्ग पृथ्वी में बदल सकता
सत्यता ने विधा से परतंत्र भारत को
विधा अधिकार से स्वतंत्र संस्कृति की है।
इसी प्राण श्वांस को देश ने विश्वास किया
सत्यता मुसीबखत्मकर श्रेष्ठ-आनन्दितहुए
मातृ भूमि पर गर्व तथा आभार से,
देश भक्ति भावना खुद में आती रही।
मातृ भूमि की ब्यापक होती आत्मियता
वह अंतस्तल ब्रह्मांड से संस्कृति लेते रहे।
अपने आस पास आप अति कृतज्ञ होते,
जिसे प्रेम से आनन्द और सुखमिलतारहता
जिससे मानव में उत्पादकता की खुशी से,
वैचारिक आत्मविश्वास दिखायी पडता।
अधिकतर लोग कहते जैसे बीज बोओगे
वैसे ही आपको बीज मिलेगा।
यदि आप दूसरे को मदद चोट पहुंचाते,
तो समझो! वैसी विधा आप को भी मिलेगी
यदि आप खुद में क्षमा भाव रखते,
तभी आपको शांत आनन्द मिलेगा।
ईर्ष्या,घ्रणा,सहनशीलता जैसे विकार,
किसी विधा से मन में प्रवेश न हो पायें।
उक्त प्रकार की भावना आप में आने से,
नकारात्मक रुप से पतन भाव लेता।
जब कोई मानव क्षमाशील होता,
तो उसका दिल-उर्जा स्वच्छ हो जाता।
उक्त स्थिति से अंतर्ब्रह्म के आने से,
विचारों से दूसरो मेंं जाती सकारात्मकता।
यदि मानव को मिला आनंद-सकारात्मकता
उसके जीवन में उत्सर्ग आत्मविश्वास देगा।
जिस विधा से किसी को लोग को देखते,
वैसे ही उसी भाव के ओ हो जाते।
उक्त विधा के अनुसार किसी को
अच्छी भावना से आप स्यमं देखें।
किसी की अच्छाई पर ध्यान केंद्रित,
न होने पर अच्छे भाव हो जायेंगे
अच्छी भावना किसी में करने से,
दिल के भाव ब्यवहार बदल सकते।
असमाजिक विधा बदलने में,
अपने में डालकर विधा दूरकर दिखाये
कोई ध्रस्टता स्यम करें,
फिर वैचारिक प्रयासों से तन-मनसे देखिये
महात्मा गांधी जी ने उच्च शिक्षाविदेशसेली
धन से सशक्त फिर भी राष्ट्र में आम रहे।
अपनी वैचारिकता सकारात्मक से
खुद को सुख शांति मिलती रही।
जब आप आलोचना दोषारोपण करते,
तो आप अपनी उर्जा नष्ट कर देते हैं।
आवश्यकता से अपने लक्ष्यों के प्राप्ति हेतु
सकारात्मक भाव को खुद द्रढता से करें।
अपने चलने वाले कदमों को सोंचे,
कि जाने वाली विधा उचित है या नहीं।
समर्पण और सकारात्मक विश्वास से,
आपमें अच्छी विधा आने लगती।
“प्रेरणा”