” ब्याज का बोझ “
देखो निशाना चूकना नही चाहिए प्रमोद गीता से बोल रहा था…( गीता प्रमोद के बड़े पिता जी की बेटी जो कलकत्ते से गाँव आई थी ) , और निशाना भी किस पर और किससे ? खटिया पर सोये शारदा गुुुरु के गाल पर गोबर से…पचाक – पचाक के साथ शारदा गुरु के गाल पर गोबर जैसे ही गिरा उनकी नींद खुल गई और उन्होने जोर – जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया , उनका चिल्लाना और प्रमोद गीता का वहाँ से नौ दो ग्यारह होना घर पहुँँच कर दोनो पेेेट पकड़ – पकड़ कर हँस रहे थे । ये बात जब गीता ने अपनी माँ को बहुत खुश होकर बताई उसकी बात सुनते ही गीता की माँ गीता पर बहुत गुस्सा हो गईं और डॉटना शुरू कर दिया गीता माँ से बोली माँ गुस्सा क्यों कर रही हो शारदा गुरु तो पागल हैं , माँ और गुस्से में बोलीं पता भी है की कैसे पागल हुये हैं शारदा गुरु ? आज मैं बताती हूँ…ये पैदाइशी पागल नही हैं करीब पच्चीस साल पहले तुम्हारे पिता जी की चाची जो सबको उनके गहने गिरवी रख कर पैसे उधार देती थी और ब्याज के साथ वापस लेती थीं , शारदा गुरू ने भी अपनी पत्नी के गहने गिरवी रख दिये और जब पैसे लेकर गहने छुड़वाने आये तो चाची ने ब्याज बढ़ा दिया इसी तरह जब – जब ये आते चाची ब्याज बढ़ाती जाती ब्याज का बोझ बढ़ता गया अपनी पत्नी के गहने न छुड़वा पाने का सदमा शारदा गुरू को ऐसा लगा की वो अपना मानसिक संतुलन खो बैठे और आज तक अपनी ऊँगलियों पर ब्याज का हिसाब करते बावलों की तरह दिन भर घूमते रहते हैं ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 02/09/2020 )