बोली बना लेती है दिलो मे घर I
एक कहावत है – जैसा देश वैसा भेस, जैसी टोली वैसी बोली , अर्थात् हम खुद मे ऐसे कुशल हो कि जगह ,परिस्थिति देख कर खुद को बोलचाल तथा पहनावे मे ढाल ले I जिसमे बोलना और प्रभावशाली बोलना, एक कला है। यह भी सही है कि कई लोगों को बोलने में जन्मजात महारत हासिल होती है। लेकिन जरूरी नहीं है कि संवाद कला में जन्मजात महारत हासिल लोग ही अपना प्रभाव जमा सके। बोलने की कला में माहिर होने के लिए कुछ प्रयास करने पड़ते हैं। अपने व्यक्तित्व की गहरी छाप लोगो पर छोड़ना चाहते है तो आपको बातचीत करने में कुशलता हासिल करनी होगी। आपके द्वारा बोला गया हर एक शब्द आपकी बातो मे वजन डाल देता है I यदि हमे किसी वस्तु या व्यक्ति विशेष की जानकारी नहीं है तब ऐसी स्थिति मे मोन रहना ज्यादा बहतर है, वजाय गलत तथ्य पेश करने के I व्यक्ति का बातचीत का लहजा ही लाखों ह्रदय मे घौसला बनाने का कौशल रखता है I एक अच्छा वक्ता हज़ारो की भीड़ को खुद के बोले हुए शब्दो का गुलाम बना लेता है I मन में आए विचारों को दूसरे व्यक्ति तक पहुंचाने और समझाने का माध्यम शब्द ही हैं। “पहले तोल फ़िर बोल” ऐसा कभी नही होता कि हमारे मन में जो-जो बातें आती हैं, हम उन सबको सामने वाले व्यक्ति के सामने बोलते जाते हैं।इस बात का निर्णय हमारी बुद्धि ने करना है कि हमे सामने वाले व्यक्ति के सामने क्या बोलना है और क्या नहीं।अपने विचार प्रस्तुत करने से पहले व्यक्ति की रुचि तथा कार्यक्षेत्र, कार्य शैली को समझ लेते है तब आप उस व्यक्ति को ज्यादा करीब ला सकते है, आप बातचीत मै जल्द सहज़ महसूस करेंगे I किसी के लिये बकवास और अनर्गल प्रलाप करना कोई बहुत बड़ी बात नहीं है। जब हम किसी से बात करते हैं, तो उनकी पूरी बात सुन लेनी चाहिए, तभी उसका सार्थक उत्तर दे I आप किसी तर्क़ और अपने सुन्दर शब्दो से बात नहीं बोलते लोग आपकी बातो को गौर से नहीं सुनते I आपकी भाषा सरल, स्पष्ट ,सौम्य ,मधुर तथा व्यक्ति , स्थान के अनुसार है तब आपका आत्मविश्वास, ज्ञान, हाव भाव, व्यवहार , चपलता आपको बोलने की कला मे विशेष व्यक्ति का दर्ज़ा देता है I
युक्ति सरला वार्ष्णेय I