बोलती आँखे….
आंखें बोलती आंखें सुनती आंखे बरसाती नेह धार
मौन हृदय नि:स्तब्ध फिज़ा बस मौन मनन है आर पार
जीवन का खोकर रश्मिरथी नीरव बैठा है रजनीरथी
उत्तम जीवन की बानी अब लगती उसको केवल कल्पित
खोया उसने निज नेह न केवल अपितु खोई हृदय निष्ठा
उठती गिरती रहती लहरों सी टीस जिनसे जागी थी आशा
अंधियारे मन में जली जो लौ वो एक मूक प्राणी की है
वो घंटो बैठ बतियाता है जब जब रजनी घिर आती है
था दग्ध हृदय लिए दर्द अनेक जो दर्द मिला केवल उसको
थे छोड़ चले जो अपने कहे सौगात में निशी देकर उसको
है जीवन के दो ओर-छोर अपनी-अपनी वेदन संग मौन
चाहे रोशन हो नभ विराट पर मन नभ रोशन करे है कौन?
है आपस की ये स्नेह राह बस मौन मनन है आर-पार
आंखें बोलती आंखें सुनती आंखे बरसाती नेह-धार
संतोष सोनी “तोषी”
जोधपुर ( राज.)