बोया बबूल बबूल ही पाया
दीनू एक किसान अशोक पुर गांव में अपनी पत्नी और दो बेटों के साथ रहता था ।दीनू आप बूढ़ा हो चला था। उसके शरीर ने काम करना बंद कर दिया था ।जब वह जवान था तब और उसने अपने जीवन को कभी गंभीरता से नहीं लिया मद मस्त जवानी में जीता था ।बुरी आदत ने उसे घेर रखा था उसकी पत्नी उसे बहुत समझाती थी। किंतु इधर से सुन उधर निकाल देता था ।अपने परिवार के प्रति सजग नहीं रहता था ।उसे अपने बच्चों और पति पत्नी की बिल्कुल चिंता ना थी ।थोड़ा बहुत जो कमाता था वह शराब और जुए में उड़ा देता था ।उसके बच्चे का पत्नी उसे बहुत समझाते थे ।धीरे-धीरे परिवार का खर्चा बढ़ने लगा मां को अपने बच्चों की पढ़ाई और भविष्य की चिंता सताने लगी थी। दिनु को अब थोड़ी समझ आने लगी थी ।क्योंकि उसके बच्चे बड़े होने लगे थे। वह अपने बच्चों और जीवन यापन के लिए अपनी खेती संभालने लगा । वह अपने खेत में कड़ी मेहनत करता रात को रात नहीं समझता दिन को दिन नहीं समझता ,भरी बारिश में ,ठिठुरते ठंड में, कड़कती धूप में ,बस मेहनत करते रहता शारीरिक पिढ़ाओ को झेलते हुए वहीं पर संघर्ष करता रहता। कहीं से दो पैसे आ जाए और मेरे बच्चों को दो वक्त का खाना मिल जाए ।खेती के अलावा वह दूसरे धंधे भी सीजन के अनुसार करता रहता था ।अब दीनू और उसके बेटे बड़े हो गए थे मां भी सिलाई करती तो कभी दिनु के साथ जंगल जंगल भटकती ,लकड़ियां काटती,महुआ बिनती, सोया बीन बीन कर खेतों में काम करना ।
कभी कभी तो उसकी चप्पल भी टूट जाती उसके पैरों में ना जाने कितने काटे चुभते पर वह उन टूटी चप्पलों को इसी तरह जोड़ लेती और फिर काम पर लग जाती थोड़ा बहुत खेतों से जो बिन बटोर कर लाती त्योहारों के लिए अपने बच्चों के लिए पैसे इकट्ठा करती ताकि तीज त्यौहार पर उसके बच्चों के लिए कपड़े सिलवा सके। गांव की कुछ महिलाएं कहती की अरी राधा थोड़े बहुत पैसे जोड़ ले सारे पैसे खर्च ना किया कर अपने बच्चों पर ।वह कहती थी कि मेरी बैंक तो मेरे बेटे ही हैं 1 दिन यही मेरी बैंक मेरा बुढ़ापे का सहारा बनेगी ।अपनी गरीबी में एक मां की कदर अपने बच्चों को पालती है उसके लिए यह बड़ा ही मुश्किल वक्त था ।कि वह अपने बच्चों को सुख सुविधाएं नहीं दे सकती। वह दूसरे बच्चों को देखती तो मन ही मन रोती और दुखी रहती पर वह अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दे रही थी ।उन्हें शिक्षा के लिए अग्रसर कर रही थी ।दुख सुख में उसने अपना जीवन बिताया किंतु अपने बच्चों को बाली उम्र में पैसों को कमाने के लिए कभी भी अग्रसर ना किया। बारिश के दिनों में एक कमरे का मकान उसमें से भी 50 जगह से पानी टपकता उसके घर में इतने बर्तन भी ना थे कि वह इतने सारे तक को में बर्तन रख सके जंगली जानवरों और जीव-जंतुओं ने उसके घर को आसपास से घेर रखा था । सांप और मेंढक तो जैसे उसके घर में बने ही रहते थे ।जिससे उसके बच्चों को अक्सर खतरा रहता था ।गरीबी दुख के दिनों में दंपत्ति की अमीर रिश्तेदारों ने ने भी खबर ना ली उन्हें सभी जगह तिरस्कार मिला क्योंकि वे गरीब और किसी के काम ना आ सकने वालों में थे ।दीनू और राधा के बच्चे के अब अपने पैरों पर खड़े हो गए साथ ही उन्हें अपने फैसले खुद लेने आ गया अब अपने माता-पिता से आंख से आंख मिलाकर बात करने लगे उनके साथ प्यार से बात करना तो दूर रहे उनसे चिढ़ने लगे उनका व्यवहार उनकी आदतें सब कुछ उन्हें बुरा लगने लगा बेटे कहते कि तुमने हमारे लिए किया ही क्या है । बेटे भूल गए कि हमारे माता-पिता ने हमें किस मुसीबत और दुखों का सामना करते हुए हमें पाला पोसा है ,हमें बड़ा किया है ।और हमें आज अपने पैरों पर खड़ा किया है ।उनकी इतनी सालों की तपस्या का उन्हें कोई फल ना मिला उनका घोंसला बिखर कर रह गया । बहू ने भी उन पर बहुत जुल्म ढाए। झूठे दोषारोपण लगाए ।एक समय तो ऐसा आया कि उन्हें घर से बेघर होना पड़ा बूढ़े मां-बाप राह राह भटकते रहे उनकी किसी ने पीर पराई ना जानी उनका कलेजा छलनी छलनी हो कर रहे गया उनकी क्षमता अब और अपमान और दुख सहने की बिल्कुल भी ना बची थी। वह रात दिन ईश्वर से प्रार्थना करते हैं ईश्वर अब हमें उठा ले किंतु जल्द ही समय का चक्र अपना पहिया बदल चुका था। जैसा बच्चों ने माता-पिता के साथ किया वही सब उन बच्चों के साथ हुआ अब पीड़ा अपनी हो चुकी थी। अब जो दर्द और दुख माता पिता ने सहा वही सब कुछ बच्चों के साथ हुआ । समझ में आ गया हमारे मां-बाप ने हमारे लिए क्या-क्या त्याग किया है, क्या-क्या संघर्ष किया है ,हमें किस गरीबी से पढ़ा लिखाया है ।वह फूट-फूट कर रोने लगे पश्चाताप की अग्नि में जलने लगे ,और अपने माता-पिता से क्षमा याचना करने लगे, माता-पिता से अपने बेटों का दुख देखा ना गया अगले ही पल में सारे दुखों को भूल गए और अपने बेटों को गले से लगा लिया क्षमा कर दिया।
निष्कर्ष- इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमारे जीवन में हम जो अपने माता-पिता के साथ करेंगे वही हमारी संतान हमारे साथ करेगी अतः अपने माता-पिता के साथ आदर, प्रेम और सहानुभूति का बर्ताव करें