बोझ
आँख खुली ,
फिर बोझ तले दबा था
जिस बोझ को ले सोया
जागने पर ज्यों का त्यों
अनवरत कोशिश की
कुछ हल्का कर लूँ
मन का गुबार निकाल दूँ
तैरे पर ही
पल तू क्यों झेलेगा
सोच कर चुप बैठ गया ।
पर मन का बोझ दबाये जा
रहा था मुझकों
हाथ पैरों में कम्पन
दिमाग में तनाव का बोझ
बोझ शब्द छोटा
पर मनः स्थिति खराब
कर दी थी मेरी
छोड़ सब कुछ सटक
लिया आफीस
पर बोझ से मुक्ति नहीं
काम का बोझ
अपनी सी करने का बोझ
सेल्फ इगो का बोझ
विधमान यहाँ भी बोझ था
अधीनस्थों के इगों का बोझ
स्व प्रदर्शन का बोझ
चाटूकारिता का बोझ
अनदेखी कैसे करूँ
हर तरफ बोझ ही बोझ
आत्म का बोझ ।