बैठकर साहिल पे लहर का उठना देखेंगे
बैठकर साहिल पे लहर का उठना देखेंगे
जल उठी शमां अब परवाने का मिटना देखेंगे
खोकर खुद को ए नादां तू किसको ढूँढने चला
लोग शहर-शहर गली -गली तेरा लुटना देखेंगे
ग़म भी देता है खुशी के संग एक ही ज़ज़्बा यहाँ
हंसी- हंसी में आँख से अश्क़ का बहना देखेंगे
तेरे मिलने से पहले जहाँ थे हम फिर वहीं हैं
किसी की याद में क्या होता है जलना देखेंगे
फूल क्यूँ रख दिए तुमने मेरी तस्वीर के साथ
क्या पता था हम खुद ही अपना मरना देखेंगे
इक दुनियाँ की लिखी जाएगी नई इबारत जैसे
अदम से हव्वा का दुनियाँ में मिलना देखेंगे
ज़रूरत के पत्थरों से दबी है फूल सी ज़िंदगी
इन्हें बढ़ा के ‘सरु’कैसे फूल का खिलना देखेंगे