बैंक पेंशनर्स की वेदना
जब सबकी पेंशन बढ़ती हैं,
बैंकर्स की क्यों नहीं बढ़ती है ?
ये प्रश्न पूछते है हम सरकार से,
क्यों ये फाईलो मे ही सड़ती हैं ?
बैंकों को हमने खून पसीने से है सीचा,
अपने सभी अरमानों को है भीचा ,
सन 95 से कोई पैंशन बढ़ी नहीं,
फिर इतना लम्बा क्यों है खीचा।
नोटबन्दी में सरकार का हमने साथ दिया,
रात के बारह बजे तक हमने काम किया ,
देखा नहीं हमने दिन रात कभी भी,
हर योजना मे सरकार का साथ दिया।
जवानी हमनें बैंकों में कुर्बान है की,
हर इच्छाओं को मारा हमने जीते जी,
कभी भी उफ़ किसी काम में हमने की,
फिर भी पेंशन क्यों नहीं बढ़ती जी ?
भले ही नोटों मे हम खेलते थे,
पर अब तो मुसीबतें झेलते है,
कम पेंशन मे कैसे करे हम गुजरा,
अब तो हम जिंदगी मौत से खेलते है।
पेंशन फंड से अच्छा रिजर्व भरा पड़ा हुआ,
मैनजमेंट न बढ़ाने पर है अब अडा हुआ,
बहाने वह अनेकों बहुत करता है,
क्यों पेंशन फंड हमारा खड़ा हुआ ?
हमसे तो एक मजदूर भी अच्छा है,
जिसका वेतन पेंशन से काफी अच्छा है।
अगर न्यूनतम वेतन की भी बात करते हो,
वह भी पेंशन से काफी अच्छा है।।
हम भीख नहीं मांग रहे हैं तुमसे,
अपना अधिकार मांग रहे तुमसे।
अधिकार देने में क्यों नानी मरती है,
जोर जबरदस्ती न करो तुम हमसे।
हमको तुम कमजोर न समझना,
दम है अभी हमारी बूढ़ी बाहों में।
हम भी रोड़ा अटका सकते है,
बैंकिंग की इन चलती राहों में।
हर बार तुम दिलासा देते हो,
पेंशन जरा भी नहीं बढ़ाते हो।
कब तक देते रहोगे ये दिलासा,
इतना हमे क्यों तुम सताते हो ?
आर के रस्तोगी
गुरुग्राम