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2 Oct 2024 · 1 min read

बे सबब तिश्नगी.., कहाँ जाऊँ..?

बे सबब तिश्नगी.., कहाँ जाऊँ..?
हर कोई अज़नबी, कहाँ जाऊँ..?

ख़्वाहिशें थीं कभी जो इस दिल में,
कर चुकीं ख़ुदकुशी कहाँ जाऊँ.?

चाँद से मुँह यूं मोड़ भी.., लूँ तो.!
हर तरफ चाँदनी.., कहाँ जाऊँ..?

हाल आख़िर मैं क्या, बताऊँ अब,
मुश्किलें कुदरती, कहाँ जाऊँ..??

मस्अला सिर्फ बू का ही था बस,
दी मसल हर कली कहाँ जाऊँ.?

मुफ़लिसी का मेरी., ये आलम है,
हो रही शाइरी.., कहाँ जाऊँ..??

शम्अ में जल गया “परिंदा” इक,
है अजब आशिक़ी कहाँ जाऊँ..?

पंकज शर्मा “परिंदा”🕊

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