बेहते जाना है
टूटी मझधार में देखो कितनी विक्राल है धारा
ना मंजिल है ना मोह सिर्फ बेहते जाना है,
चलना है चलाना है सब कुछ अपने साथ ले जाना है,
रूकेंगे ना ,ना मुड़ेंगे सिर्फ बेहते जाना है,
दर्द कि दुकान बना दिल मेरा, टूटा बाधं सब्र का,
जल गया संयम मेरा, वेदना के अग्नि में,
निकाल फेंकना है शायद कम हो जाए विष का प्रभाव,
सोचेंगे ना देखेंगे बस जलाते जाएंगे,
क्रोध कि प्रचंड अग्नि में सब स्वाहा कर जाएंगे,
ना ममता बची ना सौहरत ,ना रुक सकेंगी यह धारा अब,
रो लेने दो प्रसन्न हो जाने दो मन में,
इस अश्रु के धारा को बेह जानें दो अब,
दिखता नहीं किसी की मजबूरी अब मुझे,
बस बहा ले जाना है सभी को साथ अपने,
ना पर्दा मोह का ना जाल धर्म का,
सिर्फ बहाते जाना है आऐ जो भी रोड़ा राह में
कम हो वेदना सायद बदल जाएं भाग्य मेरा,
सायद सुधर जाए मानव देख मेरे रुप काल का,
रुकना नहीं मुड़ना नहीं सिर्फ बेहते जाना है