— बेशर्मी बढ़ी —
आज कल की जिंदगी में
नित नए किस्से बनने लगे !!
जवानी के जोश में बच्चे
खुद को बड़ा समझने लगे !!
इज्जत, मान, मर्यादा को
दरकिनार यह करने लगे !!
किस को समझाएं हम
यह बेशर्म सब दिखने लगे !!
जुबान इतनी बेलगाम हुई
बढ़ चढ़ कर यह बोलने लगे !!
राह चलते कुछ कह दो
सरे राह अब बेइज्जत करने लगे !!
जवानी के जोश में यह सब
कितने अंधे हैं होने लगे !!
प्यार के नाम पर लड़किओं का
खूब ये शोषण करने लगे !!
था वो समय भी बिलकुल अलग
जब आँखों की शर्म काफी थी
अब इन्होने हटा दिआ पर्दा
बेशर्म निगाहों से सब चलने लगे !!
बड़ो की इज्जत अब नहीं रही बाकी
यह सब मनमानी हैं करने लगे !!
मर जाते थे हम जैसे इक इशारे से
आज यह बुजुर्गों को ही धमकाने लगे !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ