बेशरम रंग
बेशरम रंग
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बदचलन,बदजुबाँ,और बेरहम ,
ये रंगमंच अब हो गया है बेशरम।
कुछ और ही रंग थे ,
बीते जमाने में कभी जिसके ,
अब हो गए बेहया और बेशरम।
कभी मोहक अदाओं और सुर्ख होंठों से ,
दिल का हाल बयाँ होता था।
कभी दरख्तों की लहराती वादियों में,
झीलों में चांद दिखता था।
हवा का रुख जो बदला ,
जिस्म की नुमाइश भी बदली।
कभी झीना-सा-परदा था ,
जब से परदा हटाया हमनें ,
बेपरदा हुस्न की चाल अब तो,
हवस की चासनी में डुबी,
प्यार के गोते लगाती है।
अनावृत तन ही नहीं होता ,
नाजुक रिश्ता दरकता है।
वो कहते हैं कि हुस्नवाले तो ,
हिजाब में ही है अच्छे लगते।
पर सनातनी बहन-बेटियाँ भोली,
जिहाद में हैं अच्छे लगते।
मैंने खुद को जो नीलाम कर दिया ,
उन्होंने यूँ ही नहीं बदनाम कर दिया।
भगवा रंग को दोष मत देना ,
यही तो सूरज का गौरव है।
लहराता यही भगवा तो ,
श्रीराम कृष्ण रथ पर था।
इसी भगवे को पहन सपूतों ने ,
वतन पर कुर्वान की थी जानें ।
इसी भगवे की ताकत से ,
सम्पूर्ण ब्रह्मांड भी है रुकता ।
भगवाधारी श्रीराम का पराक्रम,
देखो,समुन्दर भी कैसे झुकता।
इसे कोई क्या मिटायेगा ,
जलते दीपक में भगवा है।
इसे बेशरम मत कहना ,
क्योंकि अग्नि का ये सहचर है ।
कहोगे इसको यदि बेशरम ,
तो फिर बेमुरव्वत है तेरा मन।
ये रंग नहीं कभी बेशरम ,
रंग तो रंगमंच का है बेशरम।
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – १७ /१२/२०२२
पौष,कृष्ण पक्ष,नवमी, शनिवार
विक्रम संवत २०७९
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