बेशक हो लाजबाब तुम
दिल के मेरे नबाब तुम।
ब़ेशक हो लाजबाब तुम।।
सूरत पढ़ूँ नज़र से मैं।
दिल की मेरी किताब तुम।।
मेरे लिये तड़पते क्यों।
अब दो सही ज़बाब तुम।।
मिलकर भी क्यो नहीं यकीं।
लगते हो जैसे ख्वाब तुम।।
करते नहीं वयाँ कभी।
अच्छे हो या खराब तुम।।
ले आये प्यार की सहर।
हो मेरे आफ़ताब तुम।।
रातें भी कितनी जागे हो
दो ‘ज्योत’ को हिसाब तुम।।
✍?श्रीमती ज्योति श्रीवास्तव साईंखेड़ा
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