बेवा का दर्द
“”””””””””””””””””
“बेवा का दर्द”
“”””””””””””””””””
सूना जीवन, बेदर्द बन गया !
दिखलाऊँ मैं ,किसको आज ?
सूनी माँग ! मन मेरा सूना !
जीऊँ या मर जाऊँ आज ??
हिम्मत टूटी ,चूड़ी फूटी ,
आस भी अब तो टूट गई !
गहने-चीर ,खाने को दौड़ें ,
किस्मत मेरी फूट गई !!
सास है कहती केश पकड़ ,
लाल मेरा क्यों खा गई ?
बंजर-मन-आँगन में मेरे ,
दर्द-वेदना समा गई ||
बोझिल दिन हैं ,कातिल रातें ,
तन्हाई से , करती बातें !
कैसे ? कितने ? जख़्म दबाकर ,
दु:ख में बैठी , काटूँ रातें ||
हे ! दीप कवि, ये दर्द मेरा ,
तू ना किसी को बतलाना !
ग़र हो कोई दर्द-ए-दवा ,
तुम पहले मुझको बतलाना ||
“””””””””””””””””””””””””””””””””
(डॉ०प्रदीप कुमार “दीप”)
“””””””””””””””””””””””””””””””””