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14 Jul 2019 · 1 min read

बेवफा बारिश

कविता

बारिश भी
आज हो रही
बेईज्ज़त

खुश होने के
बजाय
कोसते हैं
बारिश को
इन्सान

भर जाता है
पानी
शहर, मोहल्ले,
गली में
करता है त्राहि त्राहि
इन्सान

बांध देते है
नदी झील के
रास्तों को
अतिक्रमण कर
फैलाते जा रहे
कांक्रीट के जाल
धरती रहती है
प्यासी
कहर बन जाता है
पानी

चेतो अभी भी
स्वार्थी , मतलबी
इन्सान

जिन दिन
हो जाऐगी
प्रकृति बेरहम
तरसोगा
एक एक बूँद के लिए
इन्सान

स्वलिखित लेखक
संतोष श्रीवास्तव भोपाल

Language: Hindi
343 Views
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