बेवफ़ा (ग़ज़ल)
काफ़िया- आ
रदीफ़-देखते देखते
बह्र-212 212 212 212
बेवफ़ा
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इश्क उनसे हुआ देखते देखते।
हुस्न पर मर मिटा देखते देखते।
कातिलाना अदा रोग देकर गई
बेख़बर फ़िर रहा देखते देखते।
गैर के साथ रिश्ता बना प्यार का
दे गई वो दग़ा देखते देखते।
मैं हक़ीकत न समझा हुई देर थी
घाव दिल पर लगा देखते देखते।
छोड़ जाते ये गलियाँ मगर क्या करें
जाम ग़म का पिया देखते देखते।
थी दवा भी वही ज़ख्म जिसने दिया
मैं फ़ना हो गया देखते देखते।
आज “रजनी” कहे जीना’ दुश्वार है
क्यों जनाजा उठा देखते देखते?
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’