बेवजहा
बेवजहा मैं यू घूमता रहा।
न जाने मैं क्या ढूँढता रहा।
तन्हा था मैं।
फिर भी मैं दूसरों के साथ
न जाने क्यों घूमता रहा।
अकेला था मैं।
उसमें न जाने क्या ढूँढता रहा।
फिर भी मैं अकेला ही रहा।
और अकेला ही मैं घूमता रहा।
जब तू नही था।
पर मैं तेरे होने की वजहा ढूँढता रहा।
ये ना समझी नही थी मेरी
दिलगी-दीवानगी थी मेरी
जो खुद को मैं खुद मे ही ढूँढता रहा।
पर मैं पागल नही था।
पागलो की तरहा, न जाने मैं क्या ढूँढता रहा।
,,,,,..*..,,,,,,.*…,,,,,,,..*…,,,,,,…..*.,,,,,,,*
Swami ganganiya