बेरोजगारी
#गीत
है नही आसान, घर दायित्व, निज सिर पर उठाना।
सच कहूँ! मुश्किल बहुत दो, वक्त की रोटी चलाना।
खर्च हम करते रहे अब,
तक पिता की खूब दौलत ।
पूर्ण सारी हो रही थी,
जिंदगी की शान शौकत ।
किन्तु ! जिम्मेदारियों ने,
आज की हमपर हुकूमत ।
नौकरी से भी नही अब,
पूर्ण होती है जरूरत ।
हो गया आभास सब कुछ, जब पड़ा खुद ही कमाना।
सच कहूँ! मुश्किल बहुत, दो वक्त की रोटी चलाना।।
खो गयी वो मौज मस्ती,
शौक सब छूटे हमारे।
है दुखी अन्तःकरण सब,
स्वप्न भी टूटे हमारे ।
जिंदगी प्रतिदिन हमारी,
इक कहानी गढ़ रही है।
हर सफर हर मोड़ पर दिन,
रात मुश्किल बढ़ रही है।
कार्य में नित व्यस्त रहते, भूलकर हँसना हँसाना।
सच कहूँ! मुश्किल बहुत, दो वक्त की रोटी चलाना।।
बस यही कुछ लोग कहकर,
सांत्वनाएं दे रहे हैं ।
मंजिले उनको मिली हैं,
द्वन्द – दुख जिसने सहे हैं ।
किन्तु ! मेरा मन व्यथित है,
देखकर बेरोज़गारी।
चढ़ रही घर खर्च में अब,
सिर हमारे नित उधारी ।
कर रहे संघर्ष! जीवन, पथ सुगम हमको बनाना।
सच कहूँ! मुश्किल बहुत, दो वक्त की रोटी चलाना।।
अभिनव मिश्र “अदम्य”