बेरोजगारी
न लिखूं कुछ कैसे भला
ये कर्जबाजारी देखकर,
झकझोर देती है कलम भी
इनकी लाचारी देखकर।
चुनावी वादों के पर्चों सी
हालत सरकारी देखकर
दवाग्नल सी जो भड़की जाए
बेरोजगारी देखकर।
न लिखूं कुछ कैसे भला
ये कर्जबाजारी देखकर,
झकझोर देती है कलम भी
इनकी लाचारी देखकर।
चुनावी वादों के पर्चों सी
हालत सरकारी देखकर
दवाग्नल सी जो भड़की जाए
बेरोजगारी देखकर।