बेरोजगारी।
बेरोजगारी नाम है।
फैला चतुर्दिक भुज मेरा
दुर्दिन दुलारा, अनुज मेरा,
सत्ता हमारी जगत् पर
गृह हर नगर, हर ग्राम है।
बेरोजगारी नाम है।
अगम्य, विस्तृत जाल हूँ
बढ़ती रही हर साल हूँ,
जाती वहाँ शिक्षित जहाँ
होता वहीं विश्राम है।
बेरोजगारी नाम है।
दृग हैं नहीं मेरे सरल
आँचल तले रखती गरल,
जिस पर नजर जा रुक गई
वह आदमी बेकाम है।
बेरोजगारी नाम है।
जाति -वंशज सब बराबर
तट कोई लेती घड़ा भर,
हर नगर मेरा ठिकाना
हर शहर सुख – धाम है।
बेरोजगारी नाम है।
जग चाहता है बाँधना
मेरे हनन की साधना,
मुझ पर विजय की चाह में
करता न नर आराम है।
बेरोजगारी नाम है।
मेरी लहर पर राजनेता
वोट ले बनते विजेता,
पर न डरती मैं कुलिश से
घोषणा सरेआम है।
बेरोजगारी नाम है।
अनिल कुमार मिश्र।