“बेरंग शाम का नया सपना” (A New Dream on a Colorless Evening)
बेरंग सी धुंधली शाम,
उदास मन की तनहाई,
सुनसान सा इस जहाँ,
समझ नहीं आता क्या है।
चुपचाप बैठा हूँ यहाँ,
खोया हुआ अपने ख्यालों में,
कुछ नया करने को मन है,
पर कहाँ से लाऊं आशा के फूलों को।
तन्हाई में जब खुद से मिलता हूँ,
तब दिल बताता है कि कुछ नया करना होगा,
जरूरत है बस एक नई राह की,
जो ले जाए मुझे नयीं दुनिया में।
बेरंग सी धुंधली शाम,
उदास मन की तनहाई,
पर बस एक नया सपना है,
जो दिल में जग रहा है।
|| सिद्धार्थ मिश्रा ||