बेमौसम बरसात
आप के चले जाने के बाद खींच लाई
आप तक आपही की याद खींच लाई
किस को जाना था मस्जिद में जनाब
एक बहुत पुरानी फ़रियाद खींच लाई
कब के छोड़ चुके हम शेर ओ शायरी
हमको तो यहाँ आपकी दाद खींच लाई
आसमान का आसरा काफ़ी था हमें तो
गैर मकाँ में बेमौसम बरसात खींच लाई
~विनीत सिंह
Vinit Singh Shayar poet