बेमेल शादी!
खेलने की उम्र में
चूल्हा-चौका करने लगी
सात बहनों में सबसे बड़ी थी
सबकी जिम्मेदारी उठाने लगी।
जब हुई थोड़ी सयानी
बढ़ी पिता की परेशानी
क्या करता लाचार था
बेचारा मजदूर था
माँ भी वहीं करती थी मजदूरी
अठरह के उमर में
शादी की बात चली।
बिचोले ने सुझाया
एक विदुर का रिश्ता
था अच्छा अमीर
बस उमर थी थोड़ी ज़्यादा।
दो बच्चों का बाप था
पर था कई एकड़ का स्वामी
बुरी आदत कोई न थी
बस रईसों वाली कुछ
अय्याशी भी थी ज़रूरी।
राज करेगी बेटी तेरी
मालकिन बन हुकुम चलाएगी
ना कर चिंता अब
आख़िर है वो बेटी मेरी भी
बाप ने सोचा कुछ देर
फिर हाँ भर दी।
बेटी को सजाया गया
दूल्हे से मिलावाया गया
देख हैरान वो
झुर्रियां चेहरे पे
और दांत थे सारे टूटे
बाल एकदम सफ़ेद
बुढ़ापे में शौक़ चढ़ा
दोबारा शादी का।
ना निकला एक शब्द भी मुँह से
बस चुप-चाप मन की बात को
ज़हर समझ घोंट लिया
देख माँ-बाप की परेशानी
हामी में सर हिला दिया।
माँ ने पिता को बुलाया
उसे अलग से समझाया
फूल-सी अपनी बच्ची के साथ
ना करो इतना बड़ा अत्याचार
इस कच्ची उम्र में
ना दो उस बेमेल हाथों में हाथ।
पिता ने लाचारी समझाया
बाक़ी बेटियों का स्मरण दिलाया
जैसे-तैसे समझा-बुझा लिया
मन मसोस माँ ने
अपने को मना लिया।
शादी का उत्सव मना
अति सुंदर मंडप सजा
बूढ़े वर ने जी खोल
खूब खर्च किया
मन की बात वधू के
किसी ने ना पूछा।
विवाह-वेदी पर जल रहा था
पावन अग्नि या उसका मन
ढेर-ढेर जैसे उसका जीवन
बिखरा पड़ा था
वहीं मंडप के पास
अरमानों की अर्थी उठी
संग फेरों के साथ
समेट कर रखना चाह रही थी
फिर कुछ सोच रुक गई
पी लिया विष सम विवाह
एक-एक घूँट में जैसे दम घुट
बेचैनी से मर रही हो।
भाग्य पर अपने जैसे
हंस रही हो जब
सदा सुहागन का उसे
मिल रहा था सब से आशीर्वाद।