बेमेल कथन, फिजूल बात
बैर कराते मन्दिर मस्जिद।
मेल कराती मधुशाला।
– कुछ इस तरह की बेहूदी पंक्तियाँ हरिवंश राय बच्चन ने कविता के नाम पर लिख मारी है।
यह भी कोई चिंतन है? सच तो यह है कि धर्म के पाखंड स्थलों एवं शराब के नशाघरों, दोनों में ही कोई प्रिय-अप्रिय शक्ति नहीं है। मदर टेरेसा, सिस्टर निर्मला तो एक्सट्रीम आस्थावान ही थीं पर बनाने के अलावा इनने कुछ किया? धर्म की राजनीति करने वाले बदमाश एवं धर्मठेकेदारों के चलते ये झगड़े होते हैं। दूसरी तरफ, शराबघर अपने आप में मतवाला-मदहोश बनाने का कोई मदकोष तो नहीं ही है। आप नियंत्रित मात्रा में नशा का सेवन करें तो नहीं बहकेंगे। हाँ, मेल का नायाब प्रपंच जो यहाँ बच्चन ने शराब अड्डे की बड़ाई में रचा है वह तथ्यहीन तो है ही भौंडा और बचकाना भी है।
शराब एवं धर्म तभी बहकाता है जब आप इनका अनियंत्रित सेवन करते हैं!
और, सुन रहे हो न मन्दिर-मस्जिद के धर्मठेकेदारो! इस बच्चन-वचन को!!! तुम्हें यहाँ कितना बड़ा चैलेन्ज मिला है, और, कैसे चर्चों-गुरुद्वारों को बक्श दिया है गुरु कवि ने?
और, आप भी सुन रहे हो न अनाप-शनाप विज्ञापनों से छप्पर-फाड़ कमाई कर रहे बिग बी! शराब के अड्डों का कैसा मुफ्त विज्ञापन कर गये हैं आपके पिताश्री!