बेबस समाज
विषय- संत कबीर के साहित्य व जीवन दर्शन का वर्तमान समाज के लिए उपयोगिता।
शीर्षक -बेबस समाज
एक दिन अंबर भाई अपने परम मित्र प्रवीण जी के यहां पहुंचे। अंबर भाई साहित्य प्रेमी हैं, और प्रवीण जी विज्ञान के चहेते हैं। दोनों में पृथ्वी और आसमान जैसे विचारों में अंतर होना स्वाभाविक है। अंबर भाई संत कबीर जयंती पर सज धज कर काव्य पाठ हेतु हिंदी सभा के लिए आए थे ,किंतु, रास्ते में प्रवीण जी का आवास पड़ता था ,तो ,सोचा मित्र से मिलकर चाय नाश्ता कर आगे बढूंगा। अंबर भाई का चाय नाश्ते की टेबल पर प्रवीण जी से आमना सामना होता है। अंबर भाई से रहा न गया ,मन में उठते प्रश्नों का जवाब पाने की उत्कंठा उनमें कुल बुला रही थी, किंतु ,इधर कुआं उधर खाई ।शुरुआत करें तो कैसे?
अंबर जी ने भूमिका बनाते हुए कहा- प्रवीण जी ,आजकल इतिहास अपने को दोहरा रहा है ।
प्रवीण जी ने, प्रश्नवाचक नेत्रों से इसका तात्पर्य पूछा?
अंबर जी ने कहा ,वर्तमान में कोरोना की वजह से समस्त स्थानों पर नाकाबंदी चल रही है ।मस्जिद ,मंदिर सब सूने पड़े हैं ।आखिर भारतवासियों को समझ में आ गया, कि शोर -शराबा और दिखावा प्रार्थना नहीं है। ईश्वर की प्रार्थना एकान्त में बैठकर ,घर में की जा सकती है। महात्मा संत कबीर जी ने पूर्व में अपनी वाणी में कहा है ।
“माला फेरत जुग भया ।
फिरा न मन का फेर ।
कर का मनका डार दे।
मन का मनका फेर।”
प्रवीण जी ,वाकई सत्य कहा है संत जी ने ।अशांत मन में सुख दुख का एहसास होता है। मन की शांति के बिना सकारात्मक जीवन जीना बहुत कठिन है। नकारात्मक विचार जीवन को कठिन बना देते हैं।
अंबर जी ,वाह वाह बहुत अच्छे विचार हैं प्रवीण भाई ।
अब मैं दूसरा प्रश्न करता हूं ।मंदिर मस्जिद में ध्वनि विस्तारक यंत्र के बिना कोई प्रार्थना स्वीकार नहीं होती थी ।आज कोई ऊंचा स्वर ,प्रार्थना, अजान सुनाई नहीं देती, किंतु फिर भी प्रार्थना समय पर होती है ।क्या यह वास्तविकता हमारे धर्मावलंबियों और मौलानाओं को ज्ञात नहीं थी ?
प्रवीणभाई -यह सत्य से परे है कि समाज में रहकर अपनी प्रभुता स्थापित करने हेतु कोई वर्ग ऐसा क़दम उठाए जिसको उनके अनुयाई मानने पर विवश हों। भले ही वह दिखावा हो ,या मनगढ़ंत कहानी हो।
अंबर भाई -बिल्कुल पूर्णतया सत्य कहा है प्रवीण भाई ।
अपने काल में महात्मा कबीर जी ने पूर्व में दिखावे के विरुद्ध चेतावनी देकर कहा था ।
“कांकर पाथर जोड़ के,
मस्जिद लई बनाय ।
ता चढ़ि मुल्ला बांग दें,
क्या बहरा भया खुदाय। ”
इसीलिए उन्हें समाज सुधारक की श्रेणी में रखा गया है ।
प्रवीण भाई -वाकई आज भी संत कबीर जी के वचन प्रासंगिक है। आजकल कोरोना काल में प्रशासन के डंडे के आगे सब बेबस हैं,और मनमानी नहीं कर पा रहे हैं ।अतः संत कबीर की वाणी प्रासंगिक एवं सार्थक सिद्ध हो रही है ।
अंबर भाई, आजकल प्रवीण भाई आपने टीवी पर हिंदू मुस्लिम वाद विवाद होते बहुत देखा होगा ।आखिर क्यों? हिंदू मुस्लिम भाई भाई और गंगा जमुनी सभ्यता की दुहाई देने वाले, और उसको ठेंगा दिखाने वाले बहुत पढ़े-लिखे लोग आज भी संत कबीर जी की प्रासंगिकता व सार्थकता को नकार रहे हैं। यह प्राचीन काल में भी हुआ था।
प्रवीण भाई, मनुष्य सामाजिक प्राणी है ।उन्हें परस्पर स्नेह व भाईचारे के साथ रहना चाहिए ।तभी हम सब समाज का निर्माण करते हैं।
अंबर भाई ,जी हां प्रवीण जी संत कबीर जी ने सभ्य शिक्षित समाज का निचोड़ अर्थात सार अपनी वाणी में सत्य कहा है।
“पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ ,
पंडित भया न कोय ।
ढाई आखर प्रेम का,
पढ़े सो पंडित होय ।”
चर्चा ने विस्तार ले लिया था ,किंतु अंबर जी को हिंदी सभा में अपनी उपस्थिति दर्ज करानी थी ।अतः उन्होंने चाय के अंतिम घूँट के साथ ही चर्चा को विराम देने की मुद्रा मेंकहा, अंबर,
आज आज आपसे बहुत विस्तार से संत कबीर जी के समाज सुधारक रूप पर चर्चा हुई। अब विलंब हो रहा है। मुझे आवश्यक कार्य बस जाना होगा। अतः अग्रज भ्राता अनुमति प्रदान कीजिए। प्रणाम !
प्रवीण जी ,ठीक अनुज भ्राता, शुभ आशीर्वाद !
अंबर जी अपने गंतव्य को चले गये।
कहानीकार
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव,
वरिष्ठ परामर्शदाता प्रभारी ब्लड बैंक
जिला चिकित्सालय सीतापुर