बेबस-मन
बहुत परेशां, बेबस मन था।
लेकिन तुम पर सब अरपन था।
ठौर नहीं है, कोई, दुखों का।
इससे तो बेहतर बचपन था।
प्रेम, त्याग, आदर्श, समर्पण।
बड़ा राम से पर लछमन था।।
चाह रहे बस जियें प्यार से।
मगर जमाना दुर-योधन था।
जो इक पल हम साथ जिये थे।
वो इक पल सारा जीवन था।।
दुनिया का डर नहीं “बेशरम”।
बीच में लेकिन आरक्षन था।।
विजय “बेशर्म”
गाडरवारा मप्र