बेबस को सताना ही अब दस्तूर हो गया
कुछ इस तरह ज़माने का दस्तूर हो गया
थोड़ा जो उठ गया वो मद में चूर हो गया/
चलती है ये दुनिया तो उन्हीं के ही सहारे
अब तो हर किसी को ये ग़ुरूर हो गया/
पास पहुँचने को तो मैं चला लम्बी डगर
वो तो बस नज़रें फेर मुझसे दूर हो गया/
तोड़ता रहा मेरा ख़्वाब वो तो ही हर पल
ये वक़्त भी मेरे वास्ते इतना क्रूर हो गया/
प्यार की बातें भी मेरे तो बन गए थे गुनाह
वो बेवफ़ा होकर भी तो बेक़सूर हो गया/
चाहता देखना कुछ ,ये दिखाता कुछ और
आइना भी अब इतना बेसऊर हो गया/
धर उँगली जिसे मैंने सिखाया था चलना
मेरे सामने ही तो वो अब हुज़ूर हो गया/
वो शख़्स मेरे चेहरे को पहचाने अब कैसे
अब तो उसका नाम ही मशहूर हो गया/
कैसे किसी ज़ुल्म को रोके कोई अजय
बेबस को सताना ही अब दस्तूर हो गया/