बेबस इंसान
देखो कितना बेबस इंसान ।
चूर चूर उसका अभिमान ।।
प्रकृति से जो कि छेड़छाड़ ।
अब रोता है भरकर दहाड़ ।।
सबको जीने का अधिकार ।
स्वतंत्र रहकर करने को विहार ।।
अभी समय की यही पुकार ।
फिर से कर लो सोच विचार ।।
अब करो न कभी खिलवाड़ ।
नही तो आएंगे फिर दुःख के पहाड़ ।।