बेबसी
बेबसी
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रेत पर फिर इबारत लिखने को मन कर रहा है
हवा का तेज झोंका उसे मिटाने की सोच रहा है
हर मिटी इबारत से कारवां यादों का चल रहा है
सिलसिला अरसे से यूँ ही ये बदस्तूर चल रहा है
बेशुमार चाहतें लिए इंसान यूं ही भटक सा रहा है
वक़्त ज़िंदगी में सभी मुश्किल इम्तिहान ले रहा है
देखे हैं इंसान ने हर रंग मौसमे बहार के आज तक
चौतरफा अब स्याह रंग ही दिखता नज़र आ रहा है
होने को मुराद पूरी ‘सुधीर’ टूटता तारा ढूंढ रहा है
सहरा में भी इंसान सहारा ढूंढता नज़र आ रहा है