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4 Oct 2018 · 1 min read

बेबसी

आँसुओ से भीगे अल्फ़ाज़,
मैं रोज़ लिखता रहा,
दर्द अपनें पानी से,
स्याही बिखेरता रहा,
बैचेन रहता हूँ मैं,
दिन-रात लिखता रहा,
अपनें बढ़ रहे थे आगे,
मैं दर्द में डूबता जा रहा,
हूँ मैं सितारों के बीच,
बदली में छिपता रहा,
मुर्दों सी अकड़ ना थी,
वरना मैं होता टूट रहा,
नाज़ुक था दिल मेरा,
रिश्ता हर निभाने को झुकता रहा,
रंग अपनों के बदलतें हुएँ,
चुपचाप मैं देखता रहा,
रंगत हमारी भी खिलती,
पर रिश्तों में मैं पिसता रहा,
समन्दर सा रख दिल अपना,
गहराइयों में मैं घुटता रहा,
ज़िन्दगी ने फ़िर भी करवट ना ली,
हमें ख़ुदा पे गुमान रहा,
था यक़ीन की बदलेंगी,
मुक़द्दर को ओर मंजूर रहा।।
मुकेश पाटोदिया”सुर”

Language: Hindi
461 Views
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