बेबसी
दर्द जाए न बेबसी जाए !
कैसे आँखों से फिर नमी जाए!!
ये ज़रूरी नहीँ जुबां बोले !
बात आँखों से’भी कही जाए !!
आस की लौ भला जले कैसे !
आग दिल की अगर बुझी जाए !!
आरज़ू गर तुम्हें अमीरी की !
गैर- मुमकिन है बेकली जाए !!
रात बीती हुआ उजाला अब !
वक्त की धार यूँ बही जाए !!
इस मुसाफ़िर की’अर्ज़ है इतनी !
अनकही दास्तां सुनी जाए !!
धर्मेंद्र अरोड़ा “मुसाफ़िर”
संपर्क सूत्र:9034376051