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27 Jun 2020 · 2 min read

बेफिक्र सफर

मेरा सफर कभी रुका ही कहां , वो मुझे रोकना चाहता है ।
और में ज़िन्दगी की रफ्तार के साथ बस दौड़ना , रुक कर वो ठहरे रहना चाहता है , और मैं सफर के हर ठहराव को अपने अंदर बसाकर आगे बड़ना ।
ऊंचे ऊंचे पहाड़ों के रास्ते , वादियों में पसरी शांति में पंछियों की चहचहाट मुझे हमेशा अपनी ओर खींचती रहती हैं ।
यू तो रोकने वाले हजार थे मेरी राह में , पर में थी मन मोजी किसी की कहां सुनती थी । ना बचपन में सुनी और ना अब , शुरू से ही पहाड़ों में घूमना पसंद था , बर्फ की बारिश में खेलना चाहती थी । कॉलेज खत्म होते होते मैंने घूमने वाली जगहों की अधिकतर किताबे पढ़ डाली थी । और मन में इतनी जिज्ञासा हुई कि हर साल 9 महीनों की जॉब के साथ 3 महीने घूमने में ही बिताती थी । और weekend पर शनिवार रविवार अपने ही शहर की किसी दूर दराज की पहाड़ियों पर निकल जाती ।
जितना मुझे घर से निकलने की खुशी होती थी, उसे उतना ही गुस्सा मुझ पर आता , मुझे बेपरवाह होकर घूमना पसंद था । और वो मेरी परवाह के लिए कितने ही मन्नते करता था रुक जाने के लिए। पर मेरा मन किसी की कहा सुनता है जब दिल और मन दोनों साथ हो । मैं अपनी ज़िंदगी चार दिवारी के बीच बसर नहीं करना चाहती थी जहां 8 बजे का नाश्ता हो 12 बजे खाना और फिर देर शाम के बाद तक उस शक्स का खाने के लिए इंतजार करना , जिसे शायद ऐसी ही ज़िन्दगी की तलश थी। की कोई मेरे शाम के खाने तक इंतजार करे । धत् असी घिसी पिटी ज़िन्दगी थोड़ी ना चाहती थी में , मैं चाहती थी खुले आसमां में फिजाओं की सैर करना , उच्चे पहाड़ो पर अपने नाम की आवाज लगाना और उसे गूंजते हुए सुनना , और बेफिक्र होकर पगडंडियों पर चलते हुए गीत गुनगुनाना ।और तस्वीरें क़ैद करना वहां के लोगों के जीवन की प्रकृति की सुंदरता की जो हर पल अपनी खूबसूरती का पल पल सबूत देता रहता है ।
फिर एक लम्बे सफ़र के बाद घर जाकर अपने कैमरे में कैद की गई तस्वीरों को अपनी डायरी में उन पलों की तस्वीरें दादी के साथ एल्बम में स्टेपल करना , और सोशल मीडिया पर उनके बारे में मन के विचार और ब्लॉक लिखना ।
और फिर दादी को वहां के किस्से सुनाना । एक दादी ही तो है । जो आज भी मेरी तरह घूमने का शौक रखने वाली जिंदादिल इंसान और दोस्त है ।

Language: Hindi
2 Likes · 370 Views

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