बेपरवाह, उस बेनकाब चेहरा का क्या होगा/
बेपरवाह, उस बेनकाब चेहरा का क्या होगा
जिस्म की चाह में किए वफा का क्या होगा
मजहब पर सियासत होता है इस जमाने में
कानून से मिले हुए उस सजा का क्या होगा
रोटी के लिए जिस्म की बोली लगाए जाते है
जनता से किए गए उस वादा का क्या होगा
धर्म के नाम पर नफरत के जो बीज बोते हो
इससे हमारे आपसी भाईचारा का क्या होगा
———— Ravi Singh Bharati ————-
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