बेढ़प
किनारे रख ,समझदारी
कुछ अन्ट-सन्ट सा लिखते हैं
भाड़ में जाये दुनिया -दारी
चलो कुछ अगड़म-बगड़म सा करते हैं
फरमानों की तौहीन और
रिवायत की धज्जियां उड़ते हैं
अपने इतमीनान से किसी को बेदखल कर और
किसी के इतमीनान से खुद बेदखल हो जाते हैं
इतने अनजान हो कि सबको आप, और
इतनी पहचान हो कि सबको यार कहते हैं