बेटों को भी संश्कार देते
ना कमा के खाने देते ,
ना मुशीबतों मैं उधार देतें.
दोस्ती ने बचा रखा है अबतक,
वरना रिश्तेदार कबका मार देते.
मेरा घर छोड़के जाना,
तुम्हे गवारा ना था.
मै लौटकर आजाता,
एक बार जो तुम पुकार देते.
दिल की तमाम रंजिशों ने,
जिंदगी की बाजी को बिखेर दिया.
तुम चाहते तो मुश्कुरके,
ये बाजी संभार देते.
ये छेड़छाड़ ये बलात्कार,
ये तमाम गुनाह ना होते.
ना होते गर लोग बेटियों के साथ,
बेटो को भी संश्कार देते.
रचनाकार÷ जितेंद्र दीक्षित
पड़ाव मंदिर साईंखेड़ा