बेटे की माॅं
बेटे की माॅं
मैं एक माॅं होकर
माॅं को समझाती हूॅं
बुढ़ापे में जीने के
राज बताती हूॅं।
दुखी मत होया कर माॅं
सब की बातों को सुनकर
भी मुस्कुराया कर माॅं ।
जिनको पाल-पोस कर
बड़ा किया तूने !
उनसे तू क्यों घबराती है
उनके चेहरे को देखकर
ही तो तू भी सुख पाती है।
तू बातें ग़म की मुझसे
सांझा कर लिया कर
क्यों उनसे आस लगती है।
तेरे पास तो है बेटी
जो सुख-दुख तेरा बांट लेती है।
उनका भाग्य देख क्या होगा!
जो सिर्फ बेटों की माॅं
कहलाती है।
हरमिंन्दर कौर,
अमरोहा (उत्तर प्रदेश)