बेटी
तेरे ज़ीस्त के गुलिस्ताँ में मेरी जाॅं कभी पतझड़ न आए
बसंत ही बसंत हो तितलियों सा उड़ना तू भूल न पाए
बदन के नाव में कभी कोई छेद न हो मन में कोई भेद न हो
दुनियां के समन्दर को साधने का हुनर तू कभी भूल न पाए
~ सिद्धार्थ
तेरे ज़ीस्त के गुलिस्ताँ में मेरी जाॅं कभी पतझड़ न आए
बसंत ही बसंत हो तितलियों सा उड़ना तू भूल न पाए
बदन के नाव में कभी कोई छेद न हो मन में कोई भेद न हो
दुनियां के समन्दर को साधने का हुनर तू कभी भूल न पाए
~ सिद्धार्थ