बेटी
एक रंग तेरा भी
एक रंग मेरा भी
नहीं भेद इतना अंग मे
जितना भेद हे जीवन मे
जिस कोख से तु जना
उसी से मैं जनी
फिर क्यों नहीं दिखी
मेरे होने की खुशी।
आजाद मस्त मौला पंक्षी तु
मैं समाज की नजरों से घीरी
ये कैसा अंतर तेरा
बंदीश मे पर मेरे
और नाम की मैं परी।
है हौंसला उचाई छूने का भी मूझ मैं
जज्बे मे न कोई कमी
हर देवी का रुप मुझ मैं
फिर भी पीडित अकेली खडी।
सारे जहां कि सलाह मुझे
बिना गुनाह सलाखों मे पडी।
एक रंग तेरा भी
एक रंग मेरा भी
नहीं भेद इतना अंग मे
जितना भेद हे जीवन मे
कब ये भेद मिट पायेगा ?
बेटी होना पाप न कह लायेगा ?
कब बेटी होना शान होगा ?
मेरे अस्तित्व का मान होगा ?
बेटी होना अभिमान होगा ?
सोनु सुगंध २५/०१/२०१९