बेटी
तुलसी सी घर के आँगन में,
तितली सी रंग लाती है बेटी।
खुशियो से घर को महकाती,
सुन्दर कमल खिलाती है बेटी।।1
माता पिता संग भाई बहन के,
प्रिय सदन महकाती है बेटी।
दादा दादी अपनों के संग में
हंसती और हसाती है बेटी।।2
पढ़ लिख करके मात पिता का,
जग में नाम बढ़ाती है बेटी।
बेटी तो बेटी होती है
खुद रो सबे हँसती ह बेटी।।3
दो परिवारो का मिलन कराती,
प्रिय सदन महकाती है बेटी।
मात पिता संग सास ससुर के
प्यार से गीत सुनाती है बेटी।।4
अंजनी सीता अनसुइया सी
काली का रूप कहाती है बेटी।
लक्ष्मी बाई सा रूद्र रूप धर,
दुष्टो को सबक सिखाती हैं बेटी।।5
राधा मीरा सा प्यार तू ही है,
भक्ति की राह बताती है बेटी।
द्रोपती,चंडी,पद्मा बनकर,
लहू की नदी बहाती है बेटी।।6
बेटी ही क्यों भूल गई अब,
बेटी ही मरवाती है बेटी।
बेटे को तो प्यार जताती,
बेटी को नाच नचाती है बेटी।।7
बेटी बेटा की जाँच कराकर,
भ्रूण सा पाप कराती है बेटी।
बेटी को तो प्यार से राखे,
बहु को आँख बताती है बेटी।।8
बेटी तू क्यों भूल गई अब,
तू ही सास बहू और बेटी।
माँ की ममता तू ही मूरत,
फिर क्यों तू इतराती है बेटी।।9
बेटी ही बेटी की जननी है पर,
बेटी को आज सताती है बेटी।
बेटी ही ताने से बीस बहाने से,
रक्त के आँशु रुलाती है बेटी।।10
कृष्णा की बेटी नयनो की तारी,
आकर खूब सताती है बेटी।
तुलसी सी घर के आँगन में,
तितली सी रंग लाती है बेटी।।11
कृष्णकांत गुर्जर
7805060303