*बेटी*
बेटी नहीं है कोई बोझ
फिर क्यूँ कोख में मरे ये रोज?
ईश्वर का वरदान है बेटी
सकल गुणों की खान है बेटी
मात-पिता की जान है बेटी
बेटों से भी महान है बेटी
घर को स्वर्ग बनाती बेटी
गम में भी मुस्काती बेटी
गीत खुशी के गाती बेटी
दुखड़ा कभी न सुनाती बेटी
इनसे ही है घर में मौज
करो ना इनको तुम जमींदोज
बेटी नहीं है कोई बोझ
फिर क्यूँ कोख में मरे ये रोज?
धर्मेन्द्र अरोड़ा