बेटी
सारी थकन दिन भर की पल में मिट गई
दौड़कर जब मुझ से मेरी बेटी लिपट गई
बरक़त, मेरी ख़ुशियों का, फ़क़त वही एक सबब
हर मुस्कान पर उसकी मेरी मुश्किल घट गई
ख़्वाहिश महज़ अब इतनी कि पूरी कर सकूँ
उसकी हर तमन्ना में मेरी दुनिया सिमट गई
उलझाया उसके मासूम सवालों ने कुछ इस तरह
सुलझाने में जिन्हें मेरी सुबह-ओ-शाम कट गई
आई है जब से जीवन में सूरज की वो किरण
मिट गए अंधियारे सारी धुंध छंट गई