बेटी
माँ जननी के जिगर का टुकड़ा है बेटी
पिता का स्वाभिमान अभिमान है बेटी
सांसों की कीमत पर सदा पलती बेटी
दहेज की बलि पर चढती जलती बेटी
असुरक्षित वातावरण अनुभूत रहे बेटी
असहाय ,सहमी,भयभीत सी रहे बेटी
मायके और पति के घर में पराई बेटी
किसी भी घर में नहीं हैं ये स्थायी बेटी
माता पिता कोहिनूर जवान होएं बेटी
आँखों की नींद उड़ती बाहर होतीं बेटी
बाबुल नम आँखों से करे विदा है बेटी
रहे जिगर में ना जान दूर हैं जाएं बेटी
ससुराल क बनती हैं जाती श्रृंगार बेटी
खुद को नव माहौल में ढालती है बेटी
जब सास नहीं समझती बहू को बेटी
होती है उस घर में बहुत बेईज्जत बेटी
कभी कभी माहौल में हो जाएं तंग बेटी
आत्महत्या तक करने को मजबूर बेटी
कुंठित सी रहती तिल तिल मरती बेटी
अपेक्षित अग्न में पल पल जलती बेटी
कब तक होती रहेंगी हाल बेहाल बेटी
निज तृष्णाओं को करेंगी हलाल बेटी
क्या समाज में अभिन्न अंग बनेगी बेटी
खुद की शर्तों पर निर्वाह करेंगी बेटी
मायके और ससुराल ताज बनेंगी बेटी
ससुराल अभिमान स्वाभिमान हों बेटी
बेटी बचाओ बेटी पढाओ नारा हो बेटी
मेरी बहू सबसे प्यारी भी नारा हो बेटी
रत्नों में अनमोल रत्न सदा होती बेटी
बेटों से भी प्यारी दुलारी होती हैं बेटी
सुखविंद्र सिंह मनसीरत